हम भारतीयों को इन 10 चीजों की आदत हो चुकी है
1. सेट मैक्स पर फिल्म 'नायक' और 'सूर्यवंशम' का प्रसारण
हम भारतीय सेट मैक्स पर फिल्म 'सूर्यवंशम' और 'नायक' देखने के आदी हो चुके हैं. आईपीएल की कृपा से साल के बस दो महीने ऐसे हैं जब टीवी खोलने पर इन दो फिल्मों के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं. वैसे इस फेहरिस्त में सेट मैक्स अकेला नहीं है. बी4यू पर फिल्म 'वन टू का फोर', जी सिनेमा पर फिल्म 'हम आपके हैं कौन', स्टार गोल्ड पर फिल्म 'वॉन्टेड' और 'दबंग' बाइ डिफॉल्ट चलते रहते हैं.
2. हम 'इंडियन स्टैंडर्ड टाइम' से चलते हैं
चाहे आप कोई पार्टी रख लो, या अहम मीटिंग, आपके गेस्ट और को-वर्क्स टाइम पर पहुंच जाएं तो हो सकता है आपकी घड़ी फास्ट चल रही है. और अगर गलती से भी लेट लतीफी का कारण पूछ लो, तो शहर की ट्रैफिक पर सारा दोष मढ़ देना भी कॉमन मैन का कॉमन जवाब होता है.
3. 'हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है'
वैसे तो अमिताभ बच्चन ने ये लाइन फिल्म में बोली थी. था तो ये बस एकर डॉयलॉग. लेकिन असल में ये हम भारतीयों के जीने का तरीका बन गया है. भंडारे का प्रसाद लेना हो, या कॉलेज में परीक्षा का फॉर्म जमा करना हो. सिनेमा हॉल से टिकट लेनी हो, या मंदिर में दर्शन करना हो, अगर पुलिस अपनी लाठी ना बरसाए तो इस बात की पूरी गुंजाइश है कि ऐसे मौकों पर दंगे हो जाए. कभी कभी तो ये शोध का विषय भी बन जाता है कि आखिर लाइन शुरू कहां से हो रही है.
4.....सिस्टम ही खराब है
'....सिस्टम ही खराब है', 'इस सरकार का कुछ नहीं हो सकता', 'सारे नेता भ्रष्ट हैं...' समस्या चाहे जैसी भी हो, वजह बस ऐसे ही गिनाई जाती है. शहर में भूकंप आ जाए, सड़क पर कुत्ता मर जाए, किसी लड़की का रेप हो जाए यहां तक कि कोई बच्चा क्लास में फेल हो जाए, इन सबकी जिम्मेदार सरकार है. हम भारतीयों में ये गजब का टैलेंट है. गलती किसी की भी हो, कमी जो भी हो, घूम फिर के बात सरकार तक पहुंच जाती है. हम नागरिकों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है.
5. बारगेन करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
सब्जी मंडी जाकर गाजर-मूली खरीदना हो या महंगे शो रूम से लैपटॉप लेना हो यहां तक की दहेज में लेन-देन की बात हो, मौका मिलते ही बारगेनिंग शुरू. आलम ये है कि फिक्सड प्राइस शॉप में भी ' भइया ठीक ठाक दाम लगा लेना.' जैसी गुजारिश हो जाती है. दुकानदारों को भी बुरा नहीं लगता. वो भी हिन्दूस्तानी ही हैं ना, आदत है उन्हें इसकी.
6. यहां स्ट्रीट मेकैनिक्स/ जुगाड़ टेक्नोलॉजी से सुलझती है हर समस्या
ये इंजीनियिंग की वो विधा है जिसकी कोई ट्रेनिंग नहीं होती है. ऊपर वाले ने हर भारतीय का प्रोडक्शन इस इन बिल्ट क्वॉलिटी के साथ किया है. घर में दूध फट जाए, बीच सड़क गाड़ी का टायर फट जाए, राह चलते चप्पल टू जाए या फिर बिना केबल कनेक्शन लिए टीवी देखना हो, हम इंडियन्स के पास हर समस्या का तोड़ है. काम करने के सही तरीके को फॉलो किए बिना, कामचालऊ काम कर लेना जुगाड़ कहलाता है. और समय समय पर हम अपनी इसी नवोन्मेष की शक्ति का परिचय देते रहते हैं.
7. ऑल इंडियन्स आर माई ब्रदर्स एंड देयर सिस्टर्स!
स्कूल के दिनों में ही लड़कों के दिमाग में इस विचार की बरकत हो जाती है. भले ही महिला सुरक्षा पर आवाज बुलंद करने वाले लड़के इसे इत्तेफाक ना रखें, लेकिन लड़कियां इसकी आदी हो चुकी हैं.
8. गर्मियों में पावर कट
जिस दिन गर्मियों के मौसम में किसी भी शहर में आधे घंटे के लिए भी बिजली ना गुल हो, उस दिन हम कीर्तिमान कायम कर लेंगे. लोड शेडिंग के नाम पर तो कभी टेक्निकल फॉल्ट बताकर बिजली काट दी जाती है. दिल्ली सरकार तो अब पावर कट होने पर बिल में डिस्काउंट देने तक की बात कह रही है.
9. ठंड के मौसम में ट्रेनों की लेटलतीफी
ठंड के मौसम में पैसेंजर ट्रेन की तो छोड़िए जनाब, एक्सप्रेस ट्रेन भी खून के आंसू रुला देती है. ट्रेन कब आएगी, कब खुलेगी और कब आप अपने गंतव्य पर पहुंचेंगे, इसका ख्याल तो मन में लाना भी पाप है. ट्रेन में बैठने के बाद आपका सफर मंगलमय होगा या नहीं इसकी गारंटी नहीं है. लेकिन यात्रा के कुछ घंटे पहले ट्रेन कैंसिल भी हो सकती है, इस बात की पूरी गारंटी है.
10 संसद और विधानसभा का हंगामेदार सत्र
'लोकसभा की कार्यवाही 12 बजे तक स्थगित', 'राज्यसभा में विपक्ष का हंगामा', 'सत्र के हंगामेदार रहने के आसार...', जैसे ही संसद या विधानसभा का कोई सत्र चल रहा होता है, ऐसे ही सेम टू सेम हेडलाइन न्यूज में सुनने-पढ़ने को मिल जाते हैं. हमारे देश का संसद और राज्यों की विधानसभा में चर्चा कम, हंगामा ज्यादा होता. कभी कोई नेता गला फाड़ फाड़कर चिल्लाता है, तो कभी कुछ नेता मुंह पर काली पट्टी बांधकर सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर देते हैं. इस तरह सत्र पर सरकार के लाखों रुपये इन वजहों से बर्बाद होते हैं.
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