उज्जैन। आमतौर पर हमारी यही भावना रहती है कि अन्य लोगों का भला करने पर हमारा भी भला होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। आचार्य चाणक्य ने एक नीति में तीन ऐसे लोग बताए हैं, जिनका भला करने पर भी हमें दुख मिलने की संभावनाएं काफी अधिक होती हैं। चाणक्य की इस नीति के अनुसार इन तीनों लोगों से दूर रहने में ही हमारा लाभ रहता है।
चाणक्य कहते हैं-
मूर्खाशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दु:खिते सम्प्रयोगेण पंडितोऽप्यवसीदति।।
मूर्खाशिष्योपदेशेन यानी मूर्ख शिष्य को उपदेश देना
आचार्य ने श्लोक में बताया है कि यदि कोई स्त्री या पुरुष मूर्ख है तो उसे ज्ञान या उपदेश नहीं देना चाहिए। हम मूर्ख को ज्ञान देकर उसका भला करना चाहते हैं, लेकिन मूर्ख व्यक्ति इस बात को समझता नहीं है। बुद्धिहीन लोग ज्ञान की बातों में भी व्यर्थ तर्क-वितर्क करते हैं, जिससे हमारा ही समय फिजूल खर्च होता है। मूर्ख इंसान को समझाने पर हमें ही मानसिक तनाव झेलना पड़ता है। अत: ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए।
दुष्टास्त्रीभरणेन यानी दुष्ट स्वभाव की स्त्री का भरण-पोषण करना
यदि कोई स्त्री चरित्रहीन है, कर्कशा है, दुष्ट यानी बुरे स्वभाव वाली है तो उसका भरण-पोषण करने वाले पुरुष को कभी भी सुख प्राप्त नहीं होता है। ऐसी स्त्री को सिर्फ धन से मोह होता है। सज्जन पुरुष यदि ऐसी स्त्रियों के संपर्क में रहेंगे तो समाज और घर-परिवार में उन्हें अपयश ही प्राप्त होता है। जो स्त्री धर्म के पथ से भटक जाती है, वह स्वयं तो पाप करती है साथ ही दूसरों को भी पाप का भागी बना लेती है। अत: सज्जन पुरुष को इस प्रकार की स्त्रियों से किसी भी प्रकार का संपर्क नहीं रखना चाहिए।
जो व्यक्ति सदैव अकारण दुखी रहता है उससे भी दूर रहना चाहिए
आचार्य कहते हैं कि जो लोग भगवान के दिए हुए संसाधनों और सुखों से संतुष्ट न होकर सदैव विलाप करते हैं, दुखी रहते हैं, उनके साथ रहने पर हमें भी दुख ही प्राप्त होता है। समझदार इंसान को जो मिल जाता है, वह उसी में संतोष प्राप्त कर लेता है और प्रसन्न रहता है। अकारण दुखी रहने वाले लोग, दूसरों के सुख से भी ईर्ष्या का भाव रखते हैं और उन्हें कोसते रहते हैं। स्वयं कुछ प्रयत्न नहीं करते हैं और दुखी बन रहते हैं। इस प्रकार ईर्ष्या भाव रखने वाले और अकारण ही सदैव दुखी रहने वाले लोगों से दूर रहने में ही हमारी भलाई होती है।



0 comments:
Post a Comment